Friday 2 August 2013

सोमवार व्रत कथा, विधि व आरती


|| सोमवार व्रत के नियम ||


- आमतौर पर सोमवार का व्रत तीसरे पहर तक होता है|
- व्रत में अन्न या फल का कोई नियम नहीं है |
- भोजन केवल एक ही बार किया जाता है|
- व्रतधारी को गौरी- शंकर की पूजा करनी चाहिए|
- तीसरे पहर, शिव पूजा करके, कथा कह सुनकर भोजन करना चाहिए|




|| साधारण सोमवार व्रत की कथा ||


एक नगर में एक शेठ रहता था| उसे धन एश्वर्य की कोई कमी न थी फिर भी वह दुखी था क्योंकि उसके कोई पुत्र न था| पुत्र प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार को व्रत रखता था तथा पूरी श्रद्धा के साथ शिवालय में जाकर भगवन गौरी-शंकर की पूजा करता था| उसके भक्तिभाव से दयामयी पार्वती जी द्रवित हो गई और एक दिन अच्छा अवसर देखकर उन्होंने शंकर जी से विनती की,"स्वामी ! यह नगर शेठ आपका परमभक्त है, नियमित रूप से आपका व्रत रखता है, फिर भी पुत्र के आभाव से पीड़ित है| कृपया इसकी कामना पूरी करें|"




दयालू पार्वती की ऐसी इच्छा को सुनकर भगवन शंकर ने कहा, पार्वती ! यह संसार, कर्मभूमि है| इसमें जो करता है, वह वैसा ही भरता है | इस साहूकार के भाग्य में पुत्र सुख नहीं है| शंकर के इंकार से पार्वती जी निराश नहीं हुई | उन्होंने शंकर जी से तब तक आग्रह करना जरी रखा जब तक कि वे उस साहूकार को पुत्र सुख देने को तैयार नहीं हो गए|




भगवन शंकर ने पार्वती से कहा- तुम्हारी इच्छा है इसलिए मै इसे एक पुत्र प्रदान करता हूँ लेकिन उसकी आयु केवल 12 वर्ष होगी| संयोग से नगर शेठ गौरी- शंकर संवाद सुन रहा था| समय आने पर नगर शेठ को सर्व सुख संपन्न पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई| सब और खुशियाँ मनाई गईं| नगर शेठ को बधाइयाँ दी गई| लेकिन नगर शेठ की उदासी में कोई कमी नहीं आई, क्योंकि वह जानता था, कि वह पुत्र केवल 12 वर्ष के लिए प्राप्त हुआ है| उसकी बाद काल इसे मुझसे छीन लेगा| इतने पर भी सेठ ने सोमवार का व्रत और गौरी शंकर का पूजन हवन यथाविधि पहले की तरह ही जारी रखा|




जब बालक ग्यारह वर्ष का हो गया तो वह पूर्ण युवा जैसा लगने लगा, फलतः सभी चाहने लगे कि उसका विवाह कर दिया जाए| नगर सेठानी का भी यही आग्रह था | किन्तु नगर सेठ पुत्र के विवाह के लिए तैयार नहीं हुआ| उसने अपने साले को बुलवाकर आदेश दिया कि वह पर्याप्त धन लेकर पुत्र सहित काशी के लिए कूच करे और रास्ते में भजन तथा दान- दक्षिणा देता हुआ काशी पहुंचकर सर्व विद्या में पूर्ण बनाने का प्रयास करे| मामा भांजे काशी के लिए रवाना हुए| हर पड़ाव पर वे यज्ञ करते, ब्राह्मणों को भोजन कराते और दान- दक्षिणा देकर दीनहीनों को संतुष्ट करते इसी प्रकार वह काशी की ओर बढ़ रहे थे कि एक नगर में उनका पड़ाव पड़ा था और उस दिन उस नगर के राजा की कन्या का विवाह था, बारात आ चुकी थी, किंतु वर पक्ष वाले भयभीत थे, क्योंकि उनका वर एक आँख से काना था, उन्हें एक सुन्दर युवक की आवश्यकता थी| गुप्तचरों से राजा को जब सेठ के पुत्र के रूप गुण की चर्चा का पता चला तो उन्होंने विवाह के पूरा होने तक लड़का यदि दूल्हा बना रहेगा तो वे उन दोनों को बहुत धन देंगे और उनका अहसान भी मानेंगे| नगर सेठ का लड़का इस बात के लिए राजी हो गया| कन्या पक्ष के लोगों ने राजा की पुत्री के भाग्य की बहुत सराहना की कि उसे इतना सुन्दर वर मिला| जब सेठ का पुत्र विदा होने लगा तो उसने राजा की पुत्री की चुनरी पर लिख दिया कि तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ है| मै राजा का लड़का न होकर नगर सेठ का पुत्र हूँ और विद्याअध्ययन के लिए काशी जा रहा हूँ| राजा का लड़का तो काना है| राजा की लडकी ने अपनी चुनरी पर कुछ लिखा हुआ देखा तो उसे पढ़ा और विदा के समय काने लड़के के साथ जाने से इंकार कर दिया फलतः राजा की बारात खाली हाथ लौट गई| नगर सेठ का पुत्र काशी जाकर पूरी श्रद्धा और भक्ति से विद्याध्ययन में जुट गया| उसके मामा ने यज्ञ और दान पुण्य का काम जारी रखा| जिस दिन लड़का पूरे 12 वर्ष का हो गया उस दिन भी और दिनों की भांति यज्ञादि हो रहे थे| तभी उसकी तबियत ख़राब हुई| वह भवन के अन्दर ही आकर एक कमरे में लेट गया| थोड़ी देर में मामा पूजन करने को उसे लेने आया तो उसे मरा देखा उसे अत्यंत दुःख हुआ और वह बेहोश हो गया| जब उसे होश आया तो उसने सोचा मै अगर रोया चिल्लाया तो पूजन में विघ्न पड़ेगा| ब्रह्मण लोग भोजन त्याग कर चल देंगे| अतः उसने धैर्य धारण कर समस्त कार्य निपटाया| और उसके बाद जो उसने रोना शुरू किया तो उसे सुनकर सभी का ह्रदय विदीर्ण होने लगा| सौभाग्य से उसी समय, उसी रास्ते से गौरी-शंकर जा रहे थे| गौरी के कानों में वह करुण क्रंदन पहुंचा तो उनका वात्सल्य से पूर्ण ह्रदय करुणा से भर गया| सही स्थित का ज्ञान होने पर उन्होंने शंकर भगवान से आग्रह किया कि वे बालक को पुनः जीवन प्रदान कर दें| शंकर भगवान को पार्वती जी की प्रार्थना स्वीकार करनी पड़ी| नगर सेठ का इकलौता लाल पुनः जीवित हो गया| शिक्षा समाप्त हो चुकी थी| मामा भांजे दोनों वापिस अपने नगर के लिए रवाना हुए रास्ते में पहले की तरह दान दक्षिणा देते उसी नगर में पहुंचे जहाँ राजा की कन्या के साथ लड़के का विवाह हुआ था, तो ससुर ने लड़के को पहचान लिया| अत्यंत आदर सत्कार के साथ उसे महल में ले गया| शुभ मुहूर्त निकल कर कन्या और जामाता को पूर्ण दहेज़ के साथ विदा किया| नगर सेठ का लड़का पत्नी के साथ जब अपने घर पहुंचा तो पिता को यकीन ही नहीं आया| लड़के के माता- पिता अपनी हवेली पर चढ़े बैठे थे| उनकी प्रतिज्ञा थी कि वहां से तभी उतरेंगे जब उनका लड़का स्वयं अपने हाथ से उन्हें नीचे उतारेगा, वरना ऊपर से ही छलांग लगाकर आत्महत्या कर लेंगे| पुत्र अपनी पत्नी के साथ हवेली की छत पर गया| जहाँ जाकर माँ बाप के सपत्नीक चरण स्पर्श किए| पुत्र और पुत्र वधु को देखकर नगर सेठ और सेठानी को अत्यंत हर्ष हुआ| सबने मिलकर उत्सव मनाया|




|| शिव जी की आरती ||


जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा


एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा


दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा


अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी ।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा


श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा


कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी ।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा


ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा


लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा ।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा


पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा ।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा


जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला ।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ॥
ॐ जय शिव ओंकारा


काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी ।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा


त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा

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